बृजेश सिंह
बलिया। कुर्सी और सत्ता सुख भोगने के लिए लोगों को न जाने क्या क्या करना पड़ता है। सुख के क्षणों में जिन अपनों को किनारे कर चुके होते है समय आने पर उनके आगे दण्डवत होने से भी उन्हें गुरेज नहीं होता। यही हाल है जनपद के एक विधायक जी का। जिन लोगों के हाथ थामे गांव की गलियों में घूमकर सत्ता की कुर्सी पर आसीन हुए थे। एक एक कर सभी अपनो को छोड़ते चले गए। कार्यकाल भी अंतिम समयों में है। आज फिर जब चुनावी समर आया तो उन्हें अपनों की याद आने लगी है। इस समय माननीय अपनों को साथ लाने की कवायदों में जुट गए है। तरह तरह के वादे के साथ झुनझुने थमाए जा रहे है।
राजनीतिक सूत्रों की माने विधायक जी इस समय उन अपनों के पास समय देते हुए दिखाई दे रहे है जिन्हें विधायक बनने के बाद धीरे धीरे किनारे करते चले गए। नतीजा ये हुआ उनके कार्यकाल के पांच वर्ष में चुनावी रणभेरी के समय साथ देने वालों की संख्या दर्जन भर भी नहीं रह गयी। नए सलाहकारों को लिए मन मे गुलाचे भरते हुए विधानसभा की तरक्की में जुटे रहे। बीच बीच में कुछ अपनों के साथ इस कदर तल्खी बढ़ी कि वो मीडिया के पन्नों तक पहुँच गयी। जिसमें विधायक जी की किरकिरी भी हुई। पांच साल के कार्यकाल को देखा जाय तो फेसबुक के कई पेज और व्हाट्सएप के कई ग्रुप में इनके खिलाफ टिप्पणियां भरी पड़ी है। जो समय समय पर जीवंत होती रही है। अब जब विधानसभा सभा चुनाव नजदीक आ गए है तो माननीय को उन छुटे हुए साथियों की याद सताने लगी है। जिनके घर के रास्ते वो भूल चुके, आज उनकी गलियों में दस्तक देते हुए दिखाई दे रहे है। कुछ स्थानों पर तो बिन बुलाए भी कार्यक्रम में शामिल होते नजर आ रहे है।
इन पांच वर्षों में उनके कार्यक्षेत्र में तो विकास की बाढ़ आ गयी है ।भले ही विकास बाढ़ में बह गया हो जिससे वो दिखाई नहीं देगा ।लेकिन जनता भी बाढ़ में विकास को ढूढने में लगी है । गैर तो गैर अपने भी तंज कस रहे है कि साढ़े चार साल विकास गहरी नींद में था जब चुनावी बिगुल बजा है तो नींद टूटी है और विकास की चिंता सताने लगी है ।
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