ईर्ष्या सहमी हुई मिलेगी,
रगड़ा सहमा हुआ मिलेगा।
हाथ मिला जय भारत कहिए,
बलवा मिटता हुआ मिलेगा।
चीर हरण करने वाला भी,
पहलू खां का हत्यारा भी,
सही बटन पर उँगली दाबो,
पथ पर पसरा हुआ मिलेगा।
थोड़ी अधिक शक्ति पा गदगद,
है बबूल जो लगता बरगद,
मेलजोल की हवा चली तो,
जड़ से उखड़ा हुआ मिलेगा।
कोटि कोटि की आह कह रही,
इसी नदी के तटबन्धों पर,
जैसे बिना कफ़न हम लेटे,
कातिल लेटा हुआ मिलेगा।
औने पौने में भारत के,
नवरत्नों को लेने वाला,
मौसम बदला तो फिर सबकुछ,
वापस करता हुआ मिलेगा।
जिसके कारण कृषक मर रहा,
महंगाई आकाश छू रही,
वह भी बिजली के तारों पर,
खुद से लटका हुआ मिलेगा।
राजनीति दौलत को तजकर,
सच के पथ पर फिर लौटी तो,
गीत सुनाते युवा मिलेगा,
बचपन हँसता हुआ मिलेगा।
आज़ादी को अर्पित करके,
एक नया पौधा रोपो तो,
बागों में छाया से मिलने,
सूरज उतरा हुआ मिलेगा।
ज़िन्दा है संकल्प जबतलक,
जन के मन में आजादी का,
भारत का अभिमान तिरंगा,
नभ में उड़ता हुआ मिलेगा।
धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव ( धीरु भाई )
सम्पादक
राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर सन्सद में दो टूक
लोकबन्धु राजनारायण विचार पथ एक
अभी उम्मीद ज़िन्दा है
आभार