– अपना आंगन मंदिर मस्जिद गिरजा भी हो सकता है।
– तुमसे मतलब नहीं है कोई लेकिन तुम भी दुआ करो,
– अरसे से बीमार पड़ोसी अच्छा भी हो सकता है।
– आंगन की दीवार उचक कर कभी उधर भी झांको तो,
– बिछड़ा भाई फिर मिलने को प्यासा भी हो सकता है।
– कुछ चित्रों को गैर समझकर कोई पुस्तक मत फाड़ो,
– पलट के पढ़ लो उसमें अपना मुखड़ा भी हो सकता है।
– सच कहता हूं नफरत की यह आग भरोसेमंद नहीं,
– कल इसका आहार तुम्हारा बच्चा भी हो सकता है।
– मत इतनी उम्मीद करो की जार जार रोना होवे,
– खून से सींचा आम फला तो खट्टा भी हो सकता है।
– बहुत बुरा है लोकतंत्र पर इतनी अच्छाई तो मानो,
– इस रस्ते पर चलकर प्यादा घोड़ा भी हो सकता है।
– इस माटी के धोधे को भी एक बार अवसर तो दो,
– गुल्ली डंडा खेलने वाला गामा भी हो सकता है।
– हर मौसम को खौफ समझकर दरवाजा मत बंद करो,
– आने वाला खुशियों का शहजादा भी हो सकता है।
धीरेंद्र नाथ श्रीवास्तव
सम्पादक
राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर – सन्सद में दो टूक
लोकबन्धु राजनारायण – सन्सद में दो टूक
अभी उम्मीद ज़िन्दा है
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