बृजेश सिंह
बता दे कि प्रदेश के शामली जनपद के कैराना लोकसभा सीट से 2014 में जीते बीजेपी के हुकुम सिंह के निधन के बाद 28 मई 2018 को कैराना में उपचुनाव हुआ था, जिसमें बीजेपी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष ने चुनाव लड़ा था। 31 मई को घोषित नतीजे में विपक्ष की संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर राष्ट्रीय लोक दल की तबस्सुम हसन ने बीजेपी की मृंगाका सिंह को 44618 वोटों से हरा दिया था। तबस्सुम के जीतने के बाद भी डीएम ने आठ घंटे तक रिजल्ट रोके रखा। काफी विवाद के बाद फिर से काउंटिंग की गई और तबस्सुम की जीत घोषित की गई। निर्वाचन आयोग की जांच में करीब 3000 वोटों की गणना में गड़बड़ी मिली थी। टेबुलेशन के लिए इस्तेमाल होने वाले फार्म 21-ई में हर राउंड के वोटों की प्रत्याशीवार एंट्री की जाती है। इसमें भी गलतियां सामने आई थी। रिटर्निंग अफसर के तौर पर इसकी सीधी जिम्मेदारी डीएम की होती है। जिसके बाद चुनाव आयोग ने उन्हें हटाते हुए 2019 लोकसभा चुनावी कार्यों के लिए बैन कर दिया था। कुछ समय बाद इंद्र विक्रम सिंह को अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी नोएडा के पद पर तैनाती दे दी गयी। वहां से लोकसभा चुनाव के बाद जुलाई 2019 में शाहजहांपुर का डीएम बना दिये गए।
दूसरी तरफ अपने अंधे माता पिता को लेकर नंगे पांव बग्घी खींचकर अपनी बहन को खोजने शामली पहुँची युवती को सहायता देने व उसके लिए जूते उपलब्ध कराये जाने, जल संरक्षण पर किये गए प्रयास के लिए बतौर डीएम ये काफी सराहे गये। शाहजहांपुर में डीएम रहते हुए जहां अस्पताल में एक जननी को कहे अटपटे शब्द के बाद उसकी मौत व डीएम की गाड़ी से एम्बुलेंस की टक्कर पर एम्बुलेंस के ड्राइवर को टायर के नीचे दबाने की बातें मीडिया से लेकर प्रदेश की राजधानी तक सुर्खियों में रही। वहीं कोविड 19 के प्रसार को सीमित पर सभी ने सराहा।
राजनीति की जन्मस्थली कहे जाने वाले जनपद में चुनाव किस रुप मे सम्पन्न कराते है यह आने वाला चुनाव ही तय के करेगा। क्योंकि चर्चा रहता है कि जनपद में आने वाले अधिकारियों को यहां की राजनीति से भय लगता है। कौन अफसर कब और किसलिए शिकार हो जाये ये कहा नहीं जा सकता। वैसे भी वर्तमान में जिले की राजनीति आपसी खींचतान में उलझी हुई है। जो अफसरों के लिए सरदर्द बनी रहती है। अब देखना है कि इन्द्र विक्रम सिंह चुनावी कार्यो पर अपनी इमेज बनाते है या फिर …… उनके कौन से कार्य खट्टी मीठी यादों में रहने वाले है।