राजू राय
भीमपुरा, बलिया । पौराणिक मान्यतओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की उदया तिथि चतुर्दशी को देव दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। अर्थात जिस दिन पूर्णिमा तिथि प्रदोष काल से लेकर पूरी रात रहे उसे त्रिपुरारि पूर्णिमा, और त्रिपुरोत्सव भी कहते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर त्रिपुरासुर नामक असुर का वध किया था, जिसकी खुशी में सभी देवताओं ने मिलकर दीप जलाकर उत्सव मनाया था। इसलिए इस उत्सव को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन स्नान कर दीपदान करने का बहुत अधिक महत्व है। इस साल यह पर्व 18 नवंबर को मनाया जाएगा।
देव दीपावली का ये त्यौहार उत्तर प्रदेश में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। गंगा नदी और काशी के विभिन्न घाटो पर मिट्टी के अनगिनत दीपों को जला कर पानी में प्रवाहित किया जाता है।
क्षेत्र के उधरन निवासी डॉ विद्या भूषण मिश्र ने बताया कि शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन समस्त देवताओं का पृथ्वी पर आगमन होता है और उनके स्वागतार्थ पृथ्वी पर अवस्थित समस्त धार्मिक स्थानों पर दीप जलाये जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार संध्या के समय शिव-मन्दिर में भी दीप जलाये जाते हैं। शिव मन्दिर के अलावा अन्य मंदिरों में, चौराहे पर और पीपल के पेड़ व तुलसी के पौधे के नीचे भी दीये जलाए जाते हैं। दीपक जलाने के साथ ही भगवान शिव के मन्दिर दर्शन पूजन का विधान है। ऐसा करने से मनुष्य के ज्ञान और धन में वृद्धि होती है। साथ ही स्वास्थ्य अच्छा रहता है और दीर्घायु प्राप्त होती है।
इस शुभ माह में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अंगिरा और आदित्य आदि ने इस महान पर्व को प्रमाणित किया है। इसके साथ ही इस माह में उपासना, स्नान, दान, यज्ञ आदि का फल अगणित होता है।
पूर्णिमा तिथि –
18 नवंबर, गुरुवार दोपहर 11 बजकर 33मिनट से प्रारम्भ होकर 19 नवंबर, शुक्रवार अपरान्ह 01 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी।
देव दीपावली का मुहूर्त
18 नवंबर को शाम 05 बजे से 07 बजे तक है।देव दीपावली की पूजा विधि किसी भी शिव मंदिर में जाकर विधिवत षोडशोपचार पूजन करें। गौघृत का दीप दान करें, चंदन की धूप करें, अबीर चढ़ाएं, खीर पूड़ी, गुलाब के फूल चढ़ाएं। चंदन से शिवलिंग पर त्रिपुंड बनाएं और अनेक पकवानों का भोग लगाएं।