बृजेश सिंह
बता दे कि सरकार स्कूल में शिक्षकों व बच्चों की उपस्थिति व शिक्षण कार्य को धरातल पर उतारने के लिए प्रेरणा एप सहित कई नियमावली बनाई गयी उसको फॉलो करने के लिए प्रदेश से लेकर जिले तक कमेटियों का गठन और क्रियान्वयन किया गया, लेकिन नतीजा वही रह गया। इसका जीत जागता उदाहरण आज बलिया जिले के शिक्षा क्षेत्र बेरुआरबरी के प्राथमिक विद्यालय आदर की वायरल वीडियो में देखने को मिल रहा है। वहां तैनात तीन शिक्षक विद्यालय से गायब थे। विद्यालय पर तैनात रसोईया व सफाईकर्मी विद्यालय की बागडोर सम्भाल रहे थे। कुछ क्लास के बच्चें घूमते हुए दिखायी पड़ रहे थे। एक क्लास में एक युवक बच्चों को पढ़ाते हुए देखा गया। जब उससे और बच्चों से पूछा गया है तो उसने बताया कि वह सफाई वाला है। शिक्षकों की गैरहाजिरी में बच्चों को पढ़ाने का काम करता है।
अब विद्यालयों में सफाई, झाड़ू मारने वाले, खाना बनाने वालों के हाथों बच्चों का भविष्य सौंप गुरुजी अघोषित हॉलीडे का मजा लेगे तो प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कहां तक हो पायेगा ये सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इनके पीछे कहीं न कहीं विभाग की उदासीनता कहिए या फिर जुगाड़तंत्र का हावी होना भी है। हालाकिं इसी दौर में इन्हीं विद्यालयों में बहुतेरे शिक्षक शिक्षिकाएं है जिनके स्थानांतरण मात्र से बच्चे व अभिभावक रो पड़ते है। ऐसे विद्यालयों की भी संख्या कम नहीं है, जहां कोरोना काल मे ही नहीं आम दिनों में भी उनके यहां बच्चों की संख्या अच्छी खासी रहती है। आज तो कोरोना काल मे सब आने यहां नो एडमिशन का बोर्ड लगा बैठे है। उपस्थित संख्या पर भी इतरा रहे है। पर आज परिषदीय विद्यालयों में दिखने वाली संख्या एकाएक खान से उमड़ पड़ी है यह बात सभी जानते है। लेकिन कुछ के चलते पूरे महकमे को दागदार होना पड़ता है। इसके पीछे भी शिक्षा विभाग ही जबाबदेह है।