आंखों देखी अनुभव को बताते हुए उन्होने कहा कि माताएं बिस्कुट को पानी में घोल के बच्चों को दूध की जगह पिलाती थी। एक सच्ची घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि केवल गरीब परिवार ही नहीं बल्कि सवर्ण परिवार भी मुफलिसी में जी रहे हैं। एक सवर्ण परिवार शहर से लाकडाउन के दौरान पलायन कर अपने गांव आया था। लेकिन उसके पास खाने की व्यवस्था नहीं थी। गांव में बदनामी ना हो, इसलिए वह झूठमूठ की लकड़ी जलाकर धुआँ निकालते थे। जिससे लोगों को मालूम हो कि उनके घर में खाना बन रहा है। वस्तुत उनके घर में कुछ भी नही था इसलिए बनेगा क्या? ये बात लोगों को धीरे-धीरे मालूम हो गई। ऐसी विकट परिस्थितियों में लोगो ने अपने जीवन को बिताया है।
अन्य दूसरे वक्ता अतुल आचार्य ने कहा कि गरीब लोग पड़ोस की दुकानों से उधार सामान लेकर अपना जीवन जैसे तैसे चलाते हैं। जब वह मजदूरी करके शाम को लौटते हैं तो उनको पैसा चुका देते हैं। लेकिन जब बड़ी बड़ी कंपनियां आ जाएंगी तो उनके लिए यह भी संभव नहीं रह जाएगा। विनोद कोनिया ने बताया कि जो गरीब आदमी या मजदूर है। वह सस्ता से सस्ता सामान दुकानों से खरीद कर अपना पेट किसी तरह भर लेता है। लेकिन आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव के बाद ये असम्भव हो जाएगा जिससे भूखमरी बढ़ेगी।
हरियाणा के किसान नेता राजकुमार शर्मा ने किसानों के दर्द के बारे मे बताया। उन्होने स्वयं सरसों और जौ लगाया था। लेकिन जौ की खेती मे 1 लाख लगाने के बाद कुल 9000 की आमदनी हुई। इसी तरह सरसों की फसल भी घाटे की रही। घर की पूंजी भी गंवानी पड़ी। गोपाल पांडे जो मजदूरों के बीच काम करते हैं, बताया कि वर्तमान में मजदूरों की बहुत बुरी हालत है। गरीब इस समय अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई और शादी ब्याह नहीं कर पा रहे हैं। बीमार होने पर इलाज भी उनके लिए मुश्किल हो गया है।
अंत में सभा की अध्यक्षता करते हुए राम धीरज भाई ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र का यह स्वीकार करना कि दुनिया के एक तिहाई लोग रोज भूखे सोते हैं, यह शर्म की बात है। एक तरफ तो बड़े-बड़े होटलों, सरकारी और कारपोरेट कार्यक्रमों में लाखों करोड़ों खर्च होते हैं और ढेर सारा खाद्यान्न बर्बाद होता है, दूसरी तरफ लोग भूखे सोते हैं। अमीर और गरीब के बीच की ये खाई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून, व्यक्ति के जीवन जीने के अधिकार और भारतीय संविधान की समता की भावना और मानवीय गरिमा के खिलाफ है। आज देश के हालात यह हो गए हैं कि गरीब आदमी न तो अपने परिवार का पेट भर पा रहा है, न ही इलाज करा पा रहा है । जिस देश की आधी आबादी भूखे सो जाने के लिए मजबूर हो, तब ‘सबका साथ सबका विकास’ कहना बेमानी है। आज साफतौर पर दिख रहा है कि कुछ गिने-चुने परिवारों का तेजी से विकास हो रहा है, बाकी लोग गरीबी में जीने के लिए अभिशप्त हैं। सभा मे आलोक सहाय, आकाश, आयुष पटेल और प्रेम प्रकाश ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
सभा में यह संकल्प लिया गया कि “आज से हम खाना खाते समय खाने का एक दाना भी बर्बाद नहीं करेंगे और कोशिश करेंगे कि हमारे पड़ोस में कोई बिना खाए न रहने पाए ।” इस संकल्प के साथ परिचर्चा समाप्त हुई।