बृजेश सिंह
बलिया। जनपद में अबैध नर्सिंग होम, पैथोलॉजी, मेडिकल स्टोर बेरोकटोक धड़ल्ले से संचालित हो रहे है। जिसका नतीजा सबके सामने है एक महीने के अंतराल पर जिले में कही न कहीं किसी अनहोनी की सूचना खबरों में तैरने लगती है। या तो नर्सिंग होम में अप्रशिक्षित चिकित्सकों के इलाज में मां या बच्चा भगवान को प्यारा हो जाता है या किसी मेडिकल स्टोर की दवा या फिर पैथोलॉजी की गलत जांच रिपोर्ट पर चली दवा से कोई काल कलवित हो जाता है। इन सब के पीछे कही न कही परोक्ष रुप से स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोग भी है जो खुद कमीशनखोरी के चक्कर में अज्ञान मरीजों को ऐसे स्थानों पर धकेल देते है। इन स्थानों पर मरीजों के साथ इतना सब होने के बावजूद भी स्वास्थ्य महकमा खामोश बैठा रहता है। आखिर क्यों ? जांच के नाम पर खानापूर्ति क्यों ? जिले के उच्चाधिकारियों की नजर में अप्रशिक्षित चिकित्सकों की वजह से हो रही मौतों का कोई वजूद नहीं। या सिर्फ इसलिए अनदेखा कर दिया जा रहा है कि मरने वाले गरीब तबके से आते है। जनाब दिखायी देनी वाली मौते तो वो है जो परिजनों के विरोध या कही न कही मीडिया की नजर में आ जाता है नहीं तो बहुत सी मौते तो लोकल स्तर पर ही दम तोड़ देती है।

ताजा घटनाओं पर नजर डालें तो सोमवार की दोपहर में रसड़ा कस्बे के नवीन कृषि मंडी के समीप स्थित झोलाछाप चिकित्सक की अबैध साक्क्षिता हॉस्पिटल में एक मां इनकी क्रूर हाथों की शिकार हो गयी। नगहर निवासी प्रियंका का ऑपरेशन से बच्चा होने के बाद उसे मौत के मुंह मे धकेल कर हाथ खड़ा कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि बड़े अस्पताल जाते वक्त रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। उसका बच्चा भी रेफर कर दिया गया है। भगवान न करे उस परिवार पर दुखों का एक और पहाड़ टूट पड़े। परिजनों के हंगामे के बाद नर्सिंग होम के सारे कर्मचारी भाग खड़े हुए है।

आज से ठीक 20 दिन पूर्व बेल्थरारोड में बस स्टेशन रोड पर स्थित जनता हॉस्पिटल में प्रसव के बाद बच्चे की मौत हो गयी। उभांव थाना क्षेत्र के साहुनपुर निवासी सुमन पत्नी संजय यादव को बच्चा पैदा होने के लिए भर्ती कराया गया। ताज्जुब की बात है कि सीयर सीएचसी से रेफर होने के बाद इस अस्पताल पर पहुँचाने वाली कोई और नहीं एक आशा बहु ही थी जो चंद रुपये की कमीशन के चक्कर मे डॉक्टर को एमबीबीएस बता अस्पताल में प्रसूता को भर्ती करवा दिया। वहां ऑपरेशन से बच्चा पैदा हुआ लेकिन वह आधे घण्टे बाद ही भगवान को प्यारा हो गया। प्रसूता की हालत भी खराब होने लगी तो उसे दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करवाया गया। बच्चे की मौत और प्रसूता की बिगड़ती हालत से आहत परिजन हंगामा खड़ा कर दिए और पुलिस चौकी जाकर तहरीर दी। इसके बाद भी इस अस्पताल और संचालकों पर कोई बिधिक कार्यवाही नहीं कि गयी।

पिछले महीने ही नगरा बाजार में एक महिला चिकित्सक के हाथों पकड़ी थाना क्षेत्र के एक गांव की प्रसूता के बच्चे की मौत डिलेवरी के दौरान हो गयी। परिजनों व ग्रामीणों ने हंगामा बरपाया लेकिन गरीब तबके से जुड़े परिजन इसे अपना दुर्भाग्य और चिकित्सक के खिलाफ आवाज उठाने में सामर्थ्य न मानते हुए रोते बिलखते घर लौट गए।
इन सब घटनाओं के बाद भी स्वास्थ्य महकमा आखिर कब जागेगा और अप्रशिक्षितों के हाथों हो रही इन मौतों पर रोक लागयेगा। शिकायतें आने के बाद जांच की खानापूर्ति कर फाईले पुनः धूल फांकने लगती है। स्वास्थ्य महकमा को कुंभकर्णी नीद से जगाने की जिम्मेदारी क्या किसी और की भी है। क्या जिलाधिकारी महोदया की निगाह इन मौतों के सौदागरों पर या इनके परोक्ष रुप से जिम्मेदार स्वास्थ्य महकमें पर पड़ेगी। जिससे मांओं की गोद सुनी होने से बचने के साथ ही किसी के घर की गृहस्थी उजड़ने से बच जाय। या फिर मौतों का सिलसिला जारी रहेगा।