बताया जाता है कि जिले को हर महीने करीब 120 मिलियन यूनिट बिजली की आपूर्ति होती है। इसका मूल्य करीब 60 करोड़ रुपये होता है। लेकिन हर महीने 10 से 12 करोड़ की ही राजस्व प्राप्ति होती है। जो औसत में कुल राजस्व का 17 से 18 फीसदी ही है। जो बिभाग को बुरे दौर में भेजने के लिए काफी है। सवाल यह है कि बिजली विभाग आखिर आर्थिक संकट के दौर से क्यों न गुजरे जब उसके कुल राजस्व की एक चौथाई भी न मिल पाए। और उनमें महती भूमिका निभाने वालों में उसके अपने यानी सरकारी संस्थान है जो खुद एक सरकारी सिस्टम को कंगाल करने पर आमादा है। खुद की आर्थिक स्थिति सही करने के लिए बिजली विभाग को कड़े तेवर अख्तियार करना उसकी मजबूरी ही नहीं जरुरत भी है। अन्यथा की स्थिति में वह राजस्व वसूली वाले विभागों की लिस्ट में सबसे निचले पायदान पर खड़ा होगा।
यही कारण है कि विभाग ने 516 सरकारी संस्थानों की बिजली काट दी है जिसके बाद अन्य विभागों में विद्युत बकाया को लेकर हड़कंप मचा हुआ है। क्योंकि प्लान हर बार बनता है लेकिन अंतिम चरण में पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देता है।
विद्युत विभाग के एई आरके जैन ने बताया कि जिले में आपूर्ति के सापेक्ष 17 से 18 फीसदी ही हर महीने राजस्व की प्राप्ति होती है। इसके चलते विद्युत विभाग को कई समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। बकाया वसूली को लेकर अभियान चल रहा है और बकाया जमा नहीं करने वालों की आपूर्ति बंद की जा रही है।