बृजेश सिंह
बलिया। युपी विधानसभा चुनाव के तीन चरण रविवार तक समाप्त हो चुके है। जिले में मतदान सातवें चरण में है। जिले की 7 सीटों में दो सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई दिखाई दे रही है। उसी दो सीट में बेल्थरारोड विधानसभा भी है। जहां बसपा के प्रत्याशी की घोषणा होने से पहले भाजपा और सपा में सीधी लड़ाई मानी जा रही थी। लेकिन भाजपा से बागी होकर बसपा के टिकट पर मैदान में कूद पड़े प्रवीण कुमार ने दोनों पार्टी के प्रत्याशियों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है। वैसे तो जातीय समीकरण बैठाकर सभी पार्टियां अपनी जीत सुनिश्चित बता रही है, लेकिन मतदाता अभी भी यह निर्णय नहीं कर पा रहा कि विजेता और उपविजेता का खिताब किसके सिर बंधेगा। मतदाताओं की खामोशी कौन सा गुल खिलायेगी ये चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा।
बेल्थरारोड विधानसभा में सभी पार्टियों के प्रत्याशी दल बदल कर आये है। कोई बसपा छोड़ भाजपा तो कोई भाजपा छोड़ बसपा तो कोई बसपा छोड़ छड़ी का सहारा ले अपनी किस्मत चमकाने उतरे है। जिसके चलते कुर्सी का खेल रोमांचक बन गया है। कुछ प्रत्यक्ष तो कुछ अप्रत्यक्ष रुप से समर्थकों के इधर से उधर आने जाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। जो लड़ाई को और रोचक बनाते जा रहा है। नामांकन से पहले तक गठबंधन और भाजपा के बीच लड़ाई की चर्चा थी किन्तु नामांकन के बाद बसपा प्रत्याशी के आते ही लड़ाई त्रिकोणात्मक हो गयी है ।पार्टियों में प्रत्याशी को लेकर अंदरखाने में दिख रहे असंतोष ने चुनावी माहौल को द्विपक्षीय से त्रिकोणीय की तरफ धकेलने में काफी मदद की है। जिससे भितरघात किये जाने की संभावना से इनकार करना भी मुश्किल होगा। कल तक जो कमल की वकालत करते थे आज उन्हें हाथी भा रही ,इसका कारण क्षेत्रीय होना बता रहें । चुनावी समीकरण किस करवट बैठेगा अभी गर्भ में है , मतदाताओं के बदलते मिजाज से कयास भी लगाना जल्दबाजी होगी । प्रत्याशी व सर्मथक तो दूर मतदाता भी यह दावा नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर लड़ाई किसके – किसके बीच है।